कुण्डलिनी शक्ति (Serpent
Power) क्या है ? :
ऐसा माना जाता है कि आत्मा परमात्मा की शक्ति का
ही एक अंश है इसलिए जिस शरीर में आत्मा निवास करती है उसमे भी उस शक्ति का वजूद
मिलना चाहिए| लेकिन इस बारे में
मनुष्य को ज्ञान नहीं होता क्योंकि यह शक्ति मनुष्य को सामान्य रूप से नहीं दिखाई
देती है और ना ही प्राप्त होती है| यह शक्ति मनुष्य से उसी प्रकार छुपी रहती है
जैसे दूध में घी या गहरे अंधेरे के पीछे कोई रोशनी| मनुष्य के शरीर की इस छुपी
हुई शक्ति को ही कुंडलिनी शक्ति के नाम से जाना जाता है|
जब तक मनुष्य को कुंडलिनी शक्ति का ज्ञान नहीं
होता है उसे जीवन के उद्देश्य का पता नहीं चलता है| लेकिन जब मनुष्य को इस
शक्ति का सही ज्ञान हो जाता है तब उसके जीवन का अंधकार दूर होकर उसे आत्मा से
परमात्मा के सम्बन्ध का पता लगता है| तब मनुष्य के मन में उससे मिलने इस इच्छा प्रबल
हो जाती है और अंतिम समय में कठिन दौर से गुज़रकर मोक्ष को प्राप्त कर जाती है| विद्वानों द्वारा कुंडलिनी
शक्ति को सरपेंट पॉवर का नाम दिया गया है तथा इसे अपार शक्ति का स्त्रोत बताया गया
है
|
कुंडलिनी शक्ति का स्वरुप
और प्रकृति :
इस बात से मनुष्य के मन में कुंडलिनी शक्ति के
स्वरुप और प्रकृति को लेकर अनेकों प्रश्न उठते है कि यह शक्ति व्यक्ति के शरीर में
किस जगह छुपी रहती है और इसका आकर और स्वभाव कैसा होता है ?
कुंडलिनी शक्ति का वर्णन भक्तिसागर में इस
प्रकार किया गया है कि :
नागिन सूक्ष्म जानिए, बाल
सहस्त्रवाँ भाग |
सुख देव कहे आकर ही, रक्त
वर्ण जो नाग ||
इसका अर्थ है कि कुंडलिनी शक्ति नाग के समान
होती है तथा इसका रंग रक्त जैसा लाल होता है और आकर में यह बाल के हजारवें भाग से
भी पतली होती है| इसके बारें में योगाचार्यों ने विचार दिये है कि
कुंडलिनी का निवास स्थान गुदा द्वार तथा जननेंद्रिय के बीच मूलाधार चक्र में होता
है| इस बारे में संत
ज्ञानेश्वर महाराज ने ज्ञानेश्वरी नाटक गीता भाष्य में लिखा है : - कुंडलिनी शक्ति
हमारे शरीर में साढ़े तीन लपेटे लेकर नीचे की तरफ मुंह करके नागिन की तरह सोई हुई
रहती है जैसे कोई बच्चा कुमकुम में नहाकर अपने शरीर को समेट कर सोता है
|
यह शक्ति शिशु के शरीर में उस समय जागृत रहती है
जब वह माता के गर्भ में रहता है लेकिन जन्म लेने के बाद यह शक्ति लगभग सोई हुई
अवस्था में चली जाती है| जब तक कुंडलिनी शक्ति जागृत नहीं होती है तब तक मनुष्य अपने जीवन के असली
उद्देश्य और कर्मो को नहीं पहचानता और पशु के समान जीवन व्यतीत करता है| लेकिन मनुष्य योगासन,
प्राणायाम और अन्य आसनों के अभ्यास से इस शक्ति को जगा सकता है| जब यह शक्ति पूर्ण रूप से
जागृत हो जाती है तब यह सुषुम्ना नाड़ी के अन्दर ध्वनि तरंगों जैसे छल्लेदार चक्र
बनाकर सुषुम्ना नाड़ी में विभिन्न चक्रों का भेदन कर देती है| एक के बाद एक क्रमशः चक्कर
चेतन्यमय होकर साधक में अपार शक्ति का संचार कर देते है जिस कारण वह ब्रहमस्वरूप
तेज प्राप्त कर ब्रहमरंध्र में स्थित परमशिव में ध्यानमग्न होकर समाधि की अवस्था
में पहुँच जाता है|
कुंडलिनी शक्ति को कैसे
जगाया जाता है? :
इस शक्ति को जगाने के लिए योग शास्त्रों और
तंत्र ग्रंथो में अनेक उपाय बताये गए है| प्राणायाम द्वारा कुंडलिनी शक्ति को सरलता से
जागृत किया जा सकता है|
कुंडलिनी जागरण विधि :
इस विधि द्वारा इस शक्ति को जागृत करने का
अभ्यास करने से पहले साधक को यम, नियम, प्रत्याहार आदि के अनुसार प्राणायाम, अन्य
महत्वपूर्ण आसनों, बंध तथा मुद्राओं का पूर्ण ज्ञान और अभ्यास की विधि जान लेनी
चाहिए| इस विधि से पहले साधक
को अपने शरीर को अन्दर से पूर्ण रूप से शुद्ध कर लेना चाहिए तभी इसका अभ्यास शुरू
करें|
सिद्धासन की मुद्रा बनाकर बैठकर दायें हाथ के
अंगूठे द्वारा दायें नासिका छिद्र को दबा दें और नाभि से कंठ तक की सारी वायु को
धीरे धीरे बाहर निकाल दें और रेचक क्रिया करें| रेचन क्रिया के दौरान मुलबंध, उड्डीयानबंध तथा
जालंधर बंध को मजबूती से लगाकर अपनी दोनों हथेलियों को अपने दोनों घुटनों पर जमा
दें और अपनी नजरों को नासिका के अग्र भाग पर केन्द्रित करने का प्रयास करें| इस प्रक्रिया का नियमित
अभ्यास करने से कुंडलिनी शक्ति को जगाने में मदद मिलती है| जब कुंडलिनी शक्ति जागृत
हो जाती है तब शक्ति रुपी प्राण सुषुम्ना में से होकर गुज़रती है तो साधक को कुछ
रेंगने जैसा महसूस होता है| इसके बाद जब प्राण सहस्त्रार चक्र में स्थित कमल में पहुँच जाता है तब साधक
का तन और मन सुख का अनुभव करके नाचने लगता है|
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