योग के आठ अंग | अष्टांग योग | Ashtanga Yoga


स्वस्थ व्यक्ति ही योग की साधना पूर्ण रूप से कर सकता है योग के अंग व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि कर उसका पूर्ण रूप से कल्याण करते है योग के इन अंगो का बहुत महत्व है लेकिन इनका प्रयोग करने से पहले इनके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें|

योग के अंगो के नाम :

योग के आठ अंग है इनके नाम इस प्रकार है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी|

योग के आठ अंग | अष्टांग योग | Ashtanga Yoga


यम :

सामान्य व्यवहार के लिए जिन नियमो का प्रयोग किया जाता है उन्हें ही यम कहा जाता है| यम के नियमों में व्यक्ति को ऐसे कामो को त्यागना पड़ता है जिनसे समाज का अहित होता है जैसे किसी व्यक्ति को दुःख देना, लालच की नीयत रखना, किसी के साथ बुरा व्यवहार करना| पतंजलि के द्वारा यम के पांच प्रकारों का वर्णन किया गया है इनमे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य शामिल है|

नियम :

जिस प्रकार हम यम के नियमों को मानते है उसी प्रकार नियमों को भी समान रूप से मानना चाहिए| नियमों के सम्बन्ध शरीर के अंगों, इन्द्रियों और अन्तकरण से है| नियमों के अनुसार कार्य करने से मनुष्य का मन और शरीर पवित्र हो जाते है| नियमों का पालन करने से ही मनुष्य सामजिक व्यव्हार में निपुण होता है| नियम के पांच प्रकार होते है इनमे शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान है|

आसन :

ऐसी यौगिक क्रियाएं जिनसे शरीर का विकास होता है उन्हें आसन कहा जाता है| योगासन शरीर को स्वस्थ बनाने के साथ साथ शारीरिक क्षमता, लोच और उम्र को बढ़ाता है| रोगों से मुक्त होने से लिए भी योगासन करने चाहिए इनसे बहुत लाभ मिलता है और योगासनों से व्यक्ति का उत्साह बढ़ता है|

प्राणायाम :

प्राणायाम द्वारा प्राण की गति को रोककर या धीमा करके शरीर की आंतरिक गति / प्राण को दिव्य व् सात्विक बनाया जाता है| इसके द्वारा मन, प्राण व् मस्तिष्क की शक्ति में वृद्धि की जा सकती है| इसके तीन अंग होते है जो इस प्रकार है :

1.      प्राणवायु को आवश्यक रूप से लेना
2.      साँस लेने की प्रक्रिया को नियमित रूप से लम्बा और गहरा करें|
3.     तीसरा अंग बहुत ही कठिन है इसमें प्राण पर हमेशा ध्यान रखना जरुरी है| जो व्यक्ति इसे करने में सफल हो जाता है वह लम्बे समय तक जीवन व्यतीत कर सकता है साथ ही जीवन काल में अपार सफलता भी हासिल करता है|

प्रत्याहार :

प्रत्याहार से हमारा अभिप्राय है कि किसी भी विषय या संसार के बंधन में बंध कर कार्य ना करना | इसके लिए आपको अपना घर, परिवार और अपने दोस्तों से किनारा करने की जरुरत नहीं होती है आपको केवल मोहमाया का त्याग करना होता है| मन की स्थिति को दृढ करके अपने सारे कार्य करते हुए इन्द्रियों को अपने वश में रखने को ही प्रत्याहार कहते है | प्रत्याहार से मन साफ और निर्मल बनता है इससे मन के सारे दोष दूर किये जा सकते है| आपके विचारों को नई दिशा देने के लिए प्रत्याहार का प्रयोग बहुत लाभ देगा|

धारणा :

योग के इस अंग में आपको अपने मन को एकाग्र रखना है बार बार प्रयास करके अपने मन को किसी भी उद्देश्य या विषय पर एकाग्रचित करना ही धारणा कहलाता है| यह आपके बुद्धि के स्तर को बढ़ाने के साथ साथ शुद्धिकरण और विकास करने में सहायक है| धारणा करके जीवन में अपार सफलता प्राप्त की जा सकती है|

ध्यान :

किसी एक विषय पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए उससे सम्बंधित समस्याओं को नजरंदाज कर दे और अपनी मनोवृति को एक जगह केन्द्रित करे| चिंतन व् मनन करना ही ध्यान है| मन को एक जगह केन्द्रित करने की माध्यम अवस्था ही ध्यान है इसमें मन एकाग्र हो जाता है और रजोगुण व् तमोगुण का असर खत्म होकर सतोगुण प्रधान हो जाता है| धिरंड ऋषि ने ध्यान के तीन प्रकार बताये है जो इस प्रकार है  :

1.      स्थूल ध्यान  - स्थूल ध्यान के अंतर्गत अपने इष्ट देवता की मूर्ति का ध्यान किया जाता है

2.      ज्योतिर्मय ध्यान – इसके अंतर्गत ज्योतिस्वरूप ब्रह्म का ध्यान लगाते है|

3.      सूक्षम ध्यान – सूक्षम ध्यान में कुंडलिनी का ध्यान लगाया जाता है| कुंडलिनी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग शांत मुद्रा में सोई हुई होती है इसको योग के द्वारा ही जागृत किया जा सकता है|

समाधि :

जब कोई साधक समाधि लगाकर पूर्ण रूप से लीन हो जाता है तो उसे अपने शरीर के अन्दर प्रकाश का अनुभव होने लगता है जिससे ह्रदय आनंदमयी हो जाता है|

निष्कर्ष :

योग की आठ क्रियाएं मनुष्य का मानसिक और आध्यात्मिक विकास करने में सहायक होती है| शरीर के दोष दूर करने और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति के लिए ये क्रियाएं बहुत जरुरी है| इससे आपका मन निर्मल होगा और ऐसे व्यक्ति समाज के लिए आदर्श बन जाते है| आप भी योग के इन अंगो का लाभ उठा सकते है और सफलता प्राप्त कर सकते है  



5 comments:

  1. संक्षिप्त और अच्छा वर्णन।

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