शलभासन :
संस्कृत भाषा में शलभ का अर्थ है “टिड्डी”| जिस प्रकार टिड्डे के शरीर
की बनावट होती है उसकी दुम बाकी शरीर से उपर उठी रहती है उसी प्रकार शलभासन में
मुद्रा बनायीं जाती है| इसी कारण इसे शलभासन का नाम दिया गया है|
विधि :
आसन करने के लिए समतल भूमि सबसे उत्तम जगह है| भूमि पर एक कम्बल या दरी
बिछा ले और पेट के बल लेट जाएँ| इसके बाद हथेलियों के साथ मुंह व् सिर को ज़मीन से लगाकर,
पैर जांघों तथा नाभि से निचले हिस्से को धीर धीरे ऊपर उठाएं| आसन करते समय आपके पैर
सीधे व तने हुए होने चाहिए| जब आप पूर्ण अवस्था आ जाये तो इस अवस्था में ज्यादा समय के लिए रुकने की
कोशिश करे और इस प्रक्रिया को लगभग 5 से 6 बार दोहराना चाहिए| अगर आपको आसन का भरपूर लाभ
लेना है तो अपने पैरों को भूमि से 45 डिग्री का कोण बनाते हुए भूमि से उठाने का
प्रयास करें| इस आसन की विधि
भुजंगासन के विपरीत है अगर इन दोनों आसनों को एक साथ किया जाये तो शरीर के सभी
अंगो के लिए बहुत फायदेमंद होता है|
शलभासन के लाभ :
1.
शलभासन करने से पेट के रोगों का इलाज किया जा सकता है साथ
ही मोटापे की समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है|
2.
इसको नियमित रूप से करने से आँतों, कमर व जांघों को शक्ति
बढ़ती है और नितम्ब भी पुष्ट होते है|
3.
शलभासन से रीढ़ की हड्डी में लचीलापन व मजबूती आ जाती है|
4.
इससे घुटनों का दर्द, कमर दर्द, साइटिका और पीठ दर्द का
इलाज किया जा सकता है|
5.
यह मांसपेशियों, नसों, नाड़ियों को शक्तिशाली बनाता है और
उनमे लचीलापन ला देता है जिससे हमारे शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है|
6.
हार्निया, मधुमेह, फेफड़ों की कमजोरी दूर करने में सहायक
होता है|
7.
शलभासन नियमित रूप से करने से कमर व पैरों को शक्ति मिलती
है| मानसिक शांति प्राप्त करने
के लिए भी यह बहुत जरुरी है|
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