जानिये डाउन सिंड्रोम और इसके लक्षणों को | jaaniye down syndrome aur iske lakshno ko


मानव शरीर के अन्दर अनेको कार्य चले रहते है जिनमे से कुछ काम शारीरिक गतिविधियों को ठीक रखते है तो कुछ उन्हें कभी भी बिगाड़ सकते है | शरीर में कोई भी बदलाव होने के कारण सामान्य जीवन जीने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है |

आज हम आपको मनुष्य के शरीर के गुणसूत्र परिवर्तन के बारे म जानकारी देंगे जिन्हें आम भाषा में डाउन सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है | इस तरह की स्थिति होने पर मनुष्य सामान्य जीवन नहीं जी सकता है | हालाँकि इस स्थिति में बदलाव या सुधार भी किया जा सकता है लेकिन इसकी सम्भावना बहुत कम रहती है |

down syndrome


सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि डाउन सिंड्रोम क्या है और यह कैसे होता है :

डाउन सिंड्रोम एक प्रकार का आनुवंशिक रोग होता है इसमें मानसिक और शारीरिक लक्षणों के समूह होते है तथा इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के अन्दर अतिरिक्त गुणसूत्र 21 होता है | इसी के कारण डाउन सिंड्रोम होने की सम्भावना होती है |

सामान्य रूप से गर्भधारण होने पर बच्चे के अन्दर माता पिता दोनों के 23 – 23 गुणसूत्र होते है लेकिन लेकिन डाउन सिंड्रोम बच्चे में एक गुणसूत्र ज्यादा होता है | इसी वजह से ऐसे लोगो को शारीरिक और मानसिक समस्याएँ होने लगती है | कई बार डाउन सिंड्रोम से ज्यादा परेशानी नहीं होती है लेकिन कभी कभी इसके लक्षण ज्यादा गंभीर हो सकते है |

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चा किसी भी उम्र की महिला से जन्म ले सकता है लेकिन इस तरह के ज्यादातर मामलों ज्यादा उम्र होने के बाद गर्भधारण करने वाली महिलाओं में देखने को मिलती है | अध्ययन के अनुसार लगभग 30 वर्ष की उम्र तक की महिला में 900 में से 1 बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त होता है | इसके बाद लगभग 35 वर्ष की आयु में 350 में 1 और 40 या इसके बाद 100 में से एक बच्चे में डाउन सिंड्रोम के लक्षण होते है |

डाउन सिंड्रोम के लक्षण :

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में जन्म लेने के बाद से दिल सम्बन्धी बिमारियों के लक्षण देखे जा सकते है | इसके अलावा बहरापन या कम सुनने की परेशानी होना, आँखों की रोशनी कम होना , थायरॉयड, आंतो तथा अस्थि ढांचे से सम्बंधित विकार आदि भी होने लगते है |

जितनी ज्यादा उम्र होने के बाद महिला बच्चे को जन्म देती है वैसे ही बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की सम्भावना बढ़ने लगती है | यह एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज कभी भी नहीं किया जा सकता है | हालाँकि उन्हें जिंदगी जीने में थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है लेकिन वे भी सामान्य व्यक्तियों की तरह व्यस्क जीवन जी सकते है |

इस तरह के विकार से ग्रस्त होने के बाद बच्चे का मानसिक बहुत कमजोर रहता है तथा उसका मानसिक स्तर शून्य से मध्यम के बीच का होता है | इनकी शारीरिक बनावट भी सामान्य से कुछ अलग ही होती है जैसे कि चेहरे चपटे आकार का होता है या हो सकता है | आंखो में भी तिरछापन आ जाता है जो नीचे से ऊपर की तरफ होता है | कान छोटे होते है तथा जीभ सामान्य से कुछ बड़ी देखी जा सकती है |

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चो की मांसपेशियां भी सामान्य बच्चों की तुलना में कमजोर होती है लेकिन जैसे जैसे वे बड़े होने लगते है उनकी मांसपेशियों को भी मजबूती मिलने लगती है | ऐसे बच्चे सामान्य बच्चो की तुलना में चलना, बोलना, उठाना – बैठना थोड़ी देर से सीखते है क्योंकि इनकी वृद्धि धीमी प्रक्रिया से होती है | डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे भी सामान्य बच्चो जितने वजन वाले होते है लेकिन जैसे जैसे ये बड़े होते है इनकी ग्रोथ में धीमापन ही रहता है |

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चो में कई तरह की समस्याएँ देखने को मिलती है लेकिन इनमे सबसे ज्यादा लगभग 50 % बच्चे दिल सम्बन्धी रोगों से पीड़ित पाए जाते है | इनसे अलग ऐसे बच्चों में पाचन की समस्याएँ, हाइपोथायरायडिज्म, सुनने व देखने की समस्याएँ, रक्त कैंसर,  अल्जाइमर आदि कई तरह की परेशानियाँ भी देखने को मिलती है |

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के लिए :

इस रोग से ग्रस्त बच्चो का कभी भी इलाज नहीं किया जा सकता है | अगर इलाज संभव नहीं हो तो चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों या वयस्कों के साथ प्यार से पेश आने और उन्हें सहारा देने से उनका जीवन सामान्य लोगो की तरह हो सकता है | इसके अलावा इस रोग से ग्रस्त बच्चो को स्पींच थैरेपी, फिजियोथैरेपी व अन्य  तरीकों से मदद दी जा सकती है |

इस रोग से ग्रस्त बच्चे सामान्य बच्चो की तरह अपने सभी काम स्वयं ही कर सकते है लेकिन उनकी मानसिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्हें किसी के सहारे या मदद की जरूरत होती है | जिन पेरेंट्स के बच्चे इस समस्या से पीड़ित है उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है और ना ही उन्हें इसके लिए स्वयं को जिम्मेदार मानना चाहिए | उन्हें हमेशा अपने बच्चे के साथ रहकर उनकी मदद करनी चाहिए और उन्हें बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए |

 




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