अर्धमत्स्येन्द्रासन
इस आसन में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ समाधि
लगाते थे, मत्स्येन्द्रासन
बहुत ही कठिन आसन है इसलिए इसका सरल और सुगम रूप में परिवतन करके इसे
अर्धमत्स्येन्द्रासन का नाम दे दिया गया है|
विधि :
समतल भूमि पर सामान्य तरीके से बैठ कर पैरों को सामने
की तरफ फैला दें| अब बाएं पैर को मोड़ दें और दायें पैर को बाएं पैर की जांघ पर रख दें| इसके बाद दायें पैर को भी
मोड़ दें और एड़ी को मूलाधार के बीच के कोमल भाग पर रख दें| इसके बाद बाएं घुटने पर
कन्धा लगाकर दायें हाथ से बाएं पैर का अंगूठा पकड़ लें| अब बाएं हाथ को पीठ के
पीछे से घुमा कर दायीं जांघ से स्पर्श करा दें| सिर व ठुड्डी को बाएं कंधे की सीध में रखें| नजर को सामने की तरफ
नासिका के अग्र भाग पर रखें| इस क्रिया को पैर बदल कर दोहराते रहें|
अर्धमत्स्येन्द्रासन के लाभ :
1.
इससे मेरुदंड में लोच बनती है जिस कारण युवावस्था लम्बे समय
तक बनी रहती है|
2.
अर्धमत्स्येन्द्रास से गर्दन और कन्धों को मजबूती मिलती है|
3.
कोष्ट बद्धता को दूर किया जा सकता है तथा पेट के रोग भी ठीक
किये जा सकते है|
4.
इस आसन का नियमित अभ्यास करने से पुराना अतिसार, पेट में
कृमि और नसों की कमजोरी को दूर किया जा सकता है|
5.
शरीर की सभी अस्थियों, नस नाड़ियों, मांसपेशियों और
ग्रंथियों के रोग ठीक किये जा सकते है और शरीर को सफुर्ती प्रदान की जा सकती है|
6.
इस आसन द्वारा मधुमेह के रोग ठीक किये जा सकते है तथा
मधुमेह को नियंत्रित भी किया जा सकता है|
7.
अर्धमत्स्येन्द्रासन से साँस नलिका की सफाई हो जाती है तथा
साँस के रोगों से छुटकारा मिल जाता है|
8.
इस आसन द्वारा पीठ, पेट के नले, पांव, गला, बाजु, कमर और
नाभि का निचला भाग व छाती के स्नायुओं का खिंचाव करके लाभ पहुँचाया जाता है|
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