जानिए क्या है चित्त की एकाग्रता और समाधि का रहस्य | योग समाधि के प्रकार | Type of Samadhi


समाधि (Samadhi)

मनुष्य के चित्त का एकाग्र  होकर ब्रह्मः में स्थिर करने का नाम ही समाधि है| यह वो अवस्था है जिसमे मनुष्य अपनी मनोवृत्तिओं को अपने वश में करके अपनी सभी शक्तिओं और ध्यान को परमात्मा या ब्रह्मः में लगा देता है| योगी को यह अवस्था बहुत मेहनत और यत्न के बाद प्राप्त होती है|    


समाधि के प्रकार (Type of Samadhi) :

पतंजलि द्वारा समाधि के दो प्रकारों को योग शास्त्र में वर्णित किया गया है जो इस प्रकार है :

1.      संप्रज्ञात समाधि :

यह समाधि लगाने के लिए साधक को ध्यान केन्द्रित करने के लिए किसी विशेष वस्तु की जरूरत होती है| साधक किसी विशेष वस्तु में ध्यान मग्न होकर पूरी तरह से डूब जाता है तथा उसी को अपनी इच्छा और उद्देश्य बना लेता है| इस समाधि को सबीज समाधि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें अंत तक के परिणाम में फल प्राप्त करने की चाहत बनी रहती है| इस समाधि से साधक को अपेक्षित फल परिणाम मिलता है जिसके कारण उसकी इच्छा दोबारा जन्म लेने की होती है| इस समाधि के चार प्रकार है सवितर्क समाधि, निर्वितर्क समाधि, सविचार और निर्विचार समाधि और इनका वर्णन निम्नलिखित है|

सवितर्क :

समाधि की इस मुद्रा में साधक किसी विशेष वस्तु पर पूर्ण रूप से तर्क विचार करता है तथा सोच समझकर व मानसिक शक्ति को इस्तेमाल करके वस्तु का ध्यान करता है| इस समाधि की मुद्रा के दौरान सारे स्थूल पदार्थों के स्थूल रूपों को स्थूल रूप में देखा जा सकता है|

निर्वितर्क :  

समाधि की इस मुद्रा के दौरान साधक किसी विशेष वस्तु के रूप रंग और आकार पर बिना तर्क विचार किये उसके स्थूल रूप को अनुभव करने की इच्छा प्रकट करता है| साधक समाधि की इस अवस्था में वस्तु को बिना तर्क किये हुए ध्यान लगाकर योगी हो सकते है|

सविचार :

समाधि की इस मुद्रा में विचार और बुद्धि तत्व प्रधान होते है और साधक द्वारा बुद्धि तत्व को ब्रह्मरंध्र के साथ जोड़कर स्थूल पदार्थों को बनाने वाले सूक्ष्म तत्वों का ज्ञान किया जाता है| इस अवस्था में बुद्धि द्वारा ही वस्तु के रूप रंग और आकार के बारे में सोच विचार करके ही उसमे डूब कर समाधि लगाने का प्रयास किया जाता है इसी कारण इसे सविचार समाधि कहा जाता है|

निर्विचार समाधि :

इस अवस्था में वस्तु पर ज्यादा विचार विमर्श और तर्क वितर्क नहीं किया जाता है| इस मुद्रा में साधक बहुत ही शांत और चिंतामुक्त मुद्रा में रहता है|

2.      असंप्रज्ञात समाधि :

इस समाधि की मुद्रा में साधक को किसी विशेष वस्तु का ध्यान लगाने की जरुरत नहीं होती है| इस समाधि को निर्बीज समाधि के नाम से भी जाना जाता है| इस समाधि में बीज नहीं होता है अर्थात यह साधना करने वाले व्यक्ति के सभी कर्मफलों को ख़त्म कर देती है| इस समाधि के अभ्यास से साधक संसार के बन्धनों से आजाद हो जाता है और उसमे दोबारा जन्म नहीं लेने की इच्छा भी बन जाती है| इस समाधि के दो प्रकार है – आनंदानुगत समाधि और अस्मितानुगत समाधि|

आनंदानुगत समाधि की मुद्रा में साधक द्वारा परमात्मा के रूप, स्वरुप और अस्तित्व में लीन होकर परमात्मा की साधना करता है और अस्मितानुगत समाधि की अवस्था में स्वयं को ही ब्रहम का अस्तित्व मान कर आत्मा को परमात्मा का बोध कराया जाता है| इस अवस्था में साधक स्वयं को भूल कर परमात्मा में पूर्ण रूप से लीन होकर साधना करता है और इसके लिए श्रद्धा, स्मृति और प्रज्ञा आदि की जरुरत होती है|

अन्य विशेष :

इनके अलावा भूमिगत समाधि भी एक प्रकार की समाधि का ही रूप है जिसके लिए ज़मीन में चौकोर  गड्डा खोदकर समाधि स्थान तैयार किया जाता है| इसके बाद इंटों से इसको चिन कर एक लकड़ी के डब्बे में साधक को बंद करके इस गड्डे में बैठा दिया जाता है तथा लकड़ी के डब्बे में वायु प्रवेश का कोई छिद्र नहीं छोड़ा जाता है| इस अवस्था में साधक के प्राण और शरीर की सभी क्रियाएं रूककर साधक को तन्मय और लीन अवस्था में पहुंचा देती है|

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