जाने अन्तर नार्मल और सिजेरियन डिलीवरी में | jaane antar normal aur sijeriyan delivery mein



आज पैसा कमाने के चक्कर में डॉक्टर नार्मल हो सकने वाली डिलीवरी को भी सिजेरियन में बदल कर स्वयं और अपने मालिको को भी बहुत पैसे कमा कर देते है | ऐसा करके सिजेरियन डिलीवरी का एक नया रिकॉर्ड बनाने में लगे डॉक्टर्स को शायद उन गरीबो की कोई चिंता नहीं है जो उनके हॉस्पिटल्स के भरी भरकम बिल चुकाते है | एक बार हॉस्पिटल में प्रवेश होने के बाद डॉक्टर मन माने बिल और इलाज के तरीके अपनाते है और बेचारा मरीज या उसके घरवाले उनके लिए केवल पैसा कमाने का जरिया होते है |

normal delevry

निजी अस्पतालों के कर स्वास्थ्य सुविधा देने वाले सरकारी अस्पतालों में सुविधाएँ केवल नाममात्र रह चुकी है | इसी वजह से प्राइवेट हॉस्पिटल अपनी मनमानी करते है | देश में जगह जगह यही हाल है कि डिलीवरी से कुछ समय पहले तक सब कुछ सामान्य होते हुए भी सही समय देखकर डॉक्टर पेशेंट्स को इस तरह से डराते है कि उन्हें सामान्य इलाज की बजाय स्पेशल या इमरजेंसी सुविधा लेनी पड़ती है और उसी का बिल भी चुकाना पड़ता है |

शुरू में सब कुछ सामान्य बताते हुए प्रसव के एक या दो दिन पहले डॉक्टर महिला या परिजनों को बताते है कि आपका केस काफी कौंप्लिकेटेड है और आपको सिजेरियन डिलीवरी करा लेनी चाहिए | जब तक मरीज और उसके घर वाले कुछ सोच विचार करते डॉक्टर उनके सामने नया दांव खेलते है कि बच्चे का सिर गर्भनाल में फंस गया है या कुछ और गंभीर समस्या बताकर उन्हें सिजेरियन करवाने के लिए मजबूर कर देते है | रोजाना प्राइवेट हॉस्पिटल्स में डॉक्टर मरीजो के साथ ऐसा ही करते है | हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार प्राइवेट हॉस्पिटल्स में डिलीवरी के लगभग 75 से 85 % केस सिजेरियन (ऑपरेशन) वाले होते है जबकि सरकारी अस्पतालों में केवल 40 % बच्चे सिजेरियन से पैदा होते है |

sijeriyan

कुछ मामलो में उम्र ज्यादा होने के कारण सिजेरियन करना जरूरी हो जाता है लेकिन सभी मामलो में सिजेरियन डिलीवरी फायदेमंद नहीं रहती है | विशेषज्ञों के अनुसार नार्मल या सामान्य डिलीवरी से पैदा होने वाला बच्चा सिजेरियन से पैदा होने वाले बच्चे की अपेक्षा पूर्ण रूप से स्वस्थ और रोगों से लड़ने में सक्षम होता है |

सिजेरियन कब करानी पड़ती है :

विशेषज्ञों के अनुसार अगर गर्भवती महिला का ब्लडप्रेशर बढ़ रहा है या दौरा पड़ने की सम्भावना बनती है तो सिजेरियन ऑपरेशन करना जरूरी हो जाता है | सिजेरियन नहीं किया जाए तो महिला के दिमाग की नसें फटने की संभावना रहती है तथा लीवर और किडनी को भी परेशानी हो सकती है | जिन महिलाओ का कद बहुत कम होता है उन्हें सामान्य डिलीवरी में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है इसलिए उनके लिए सिजेरियन ही उचित होती है |

गर्भवती महिलाओं को कई बार अधिक दवाओं का सेवन करना पड़ता है जिसकी वजह से प्रसव के समय बच्चेदानी का मुंह नहीं खुल पाता है इसलिए ऑपरेशन करके प्रसव कराया जाता है |

कभी कभी गर्भ में बच्चे की धड़कन कम हो जाती है या उसका सिर गर्भनाल में फंस जाता है | ऐसा होने से बच्चा गर्भ में घूम जाता है और उल्टा हो जाता है | इसके अलावा गर्भवती महिला में खून की कमी होने या रक्त संचार में कमी होने पर भी सिजेरियन का आवश्यकता होती है |

मिकोनियम की समस्या होने पर भी सिजेरियन डिलीवरी करके बच्चे को बचाया जाता है | यह समस्या तब होती है जब बच्चा गर्भ में ही मलमूत्र कर देता है |

सिजेरियन और (अफवाह) वहम :

सिजेरियन डिलीवरी के प्रति लोगो के अन्दर अलग अलग अफवाहे है जिनमे से कुछ आपके सामने इस प्रकार है :

कुछ लोग ऐसा मानते है कि अगर पहले बच्चे की डिलीवरी सिजेरियन से हुई है तो दूसरी बार भी बच्चा सिजेरियन से ही पैदा किया जाना चाहिए क्योंकि दूसरी बार प्रसव के दौरान टाँके टूटने का खतरा रहता है | हालाँकि ऐसा हर बार जरूरी नहीं होता अगर पहली बार स्थिति सामान्य नहीं है तो दूसरी बार भी सामान्य नहीं रहेंगी | अगर सब कुछ सही है तो दूसरी बार डिलीवरी सामान्य रूप से हो सकती है |

ज्यादातर लोग सोचते है या उनकी ऐसी धारणा हो गयी है कि सिजेरियन डिलीवरी होने के बाद महिला को कुछ महीने तक फुल बेड रेस्ट देना जरूरी है | लेकिन ऐसा जरूरी नहीं होता है प्रसव के एक महीने या डेढ़ महीने बाद महिला को नियनित रूप से अपने घरेलू काम कर लेने चाहिए| अगर महिला ज्यादा से ज्यादा समय तक बेड रेस्ट करेगी तो उसका वजन सामान्य से कही ज्यादा बढ़ जायेगा जिससे अन्य परेशानी हो सकती है |

कुछ लोग ऐसा भी मानते है कि सिजेरियन करवाने से महिला का शरीर फूलने लगेगा | यह बात सही नहीं कही जा सकती क्योंकि सबकी शारीरिक बनावट अलग अलग होती है |

डिलीवरी का सही समय कब होता है :

विशेषज्ञों के अनुसार डिलीवरी का सही समय 37 से 41 हफ्ते के बीच का होता है | इस समय बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है तथा चक्र भी पूरा हो जाता है | इससे कम समय पर डिलीवरी होने से बच्चे और माँ दोनों को परेशानी होने की सम्भावना होने लगती है | इसके अलावा नियमित रूप से जाँच कराते रहें और डॉक्टर से सलाह लेते रहें |

आजकल कामकाजी महिलायों की बच्चे पैदा करने की सोच बदल गयी है | वे अपने ऑफिस के कामों में व्यस्त होकर लगभग 30 साल की उम्र तक पहले बच्चे को जन्म देने की सोच रखती है जबकि 20 से 25 वर्ष की उम्र किसी भी महिला के लिए प्रसव के लिए उपयुक्त होती है | इस उम्र से कम अगर 18 वर्ष की उम्र में बच्चे को जन्म दिया जाये तो माँ और बच्चा दोनों ही कमजोर रहते है तथा महिला का शरीर भी इस उम्र में प्रसव के लिए पूर्ण रूप से तैयार नहीं होता है | इसके अलावा 35 वर्ष की उम्र में बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं को कई तरह की परेशानियाँ हो सकता है | इस उम्र में डिलीवरी होने पर माँ और बच्चा दोनों को खतरा हो सकता है |

सिजेरियन के बाद शरीर में बदलाव :

सिजेरियन डिलीवरी करवाने के बाद महिला के शरीर की बनावट में कुछ फर्क हो जाता है जैसे :
गर्भवती महिला का वजन सामान्य की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही होता है | हालाँकि सिजेरियन से शिशु बाहर आने के बाद महिला के शरीर का वजन कुछ कम हो जाता है | त्वचा की चमक पहले की अपेक्षा काफी कम हो जाती है तथा पेट व कमर की चर्बी लटक सी जाती है | जब तक टाँके नहीं कटते है तब तक आराम करे और बाद में व्यायाम आदि करके शरीर को पहले की तरह शेप में लाया जा सकता है | हारमोंस का प्रभाव पड़ने से जोड़ो में ढीलापन और दर्द महसूस होने लगता है तथा पेट की मांसपेशियों में भी ढीलापन देखा जा सकता है |

सामान्य रूप से बच्चे को जन्म देने वाली महिलाएं लगभग डेढ़ महीने बाद हल्की फुल्की कसरत करके खुद को फिट रख सकती है लेकिन सिजेरियन के मामले में कम से कम तीन महीने तक उचित आराम करना जरूरी होता है | डिलीवरी के बाद डॉक्टर की सलाह से एक्सरसाइज करके वजन की कम या नियंत्रित किया जा सकता है |

सिजेरियन के दौरान थोड़ी बहुत परेशानी होती है इसमें थोड़ा सा खतरा उठाना पड़ता है | सिजेरियन के दौरान रक्त स्त्राव भी होने लगता है और इससे संक्रमण की समस्या भी हो सकती है | इसमें दवाओं का सेवन करने से रिएक्शन होने की सम्भावना रहती है | बच्चे को गर्भ से बाहर निकालते समय उपकरणों से घांव हो सकता है | सिजेरियन से जिंदगी भर वजन उठाने से परहेज करना पड़ सकता है या वजन उठाने में परेशानी हो सकती है |

सिजेरियन कराने में अड़चन क्यों :

सिजेरियन डिलीवरी की बजाय सामान्य डिलीवरी के लिए किसी व्यक्ति को दस से 15 हजार रूपये खर्च करने पड़ते है जबकि सिजेरियन के लिए यही खर्च बढ़कर 25 से 50 हजार तक हो जाता है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चे तथा प्रसव कराने वाली महिला दोनों का ही स्वास्थ्य खराब हो सकता है | नार्मल डिलीवरी होने के बाद महिला को एक या दो दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है जबकि सिजेरियन के दौरान लगभग 5 दिनों बाद अस्पताल से छुट्टी दी जाती है | इसलिए सामान्य व्यक्ति या गरीब व्यक्तियों की हद से बाहर खर्च होने से उनकी आर्थिक स्थिति भी डगमगा जाती है |

इसलिए सामान्य रूप से जीवन यापन करने वाले व्यक्तिओं या परिवारों के लिए जबरदस्ती सिजेरियन थोपना बहुत महंगा और स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक होता है | इसलिए जब तक संभव हो सिजेरियन डिलीवरी से परहेज ही रखना चाहिए और नार्मल डिलीवरी को प्राथमिकता देनी चाहिए |




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