वर्तमान समय में खाना खाने और बनाने के लिए कई
प्रकार की धातुओं के बने बर्तनों का प्रयोग किये जाने लगा है लेकिन प्राचीन समय
में ऐसा नहीं था उस समय केवल मिटटी से बने बर्तनों का इस्तेमाल ही किया जाता था |
उस समय बर्तनों में खाना बनाने या खाने से कोई परेशानी नहीं होती थी बल्कि खाने का
स्वाद और भी बढ़ जाता था |
लेकिन वर्तमान समय में प्लास्टिक के बर्तनों का
इस्तेमाल बहुत ज्यादा होने लगा है जिसके कारण हमें कई प्रकार के नुकसान होने की
सम्भावना रहती है | घरों के अलावा पार्टियों, शादियों या अन्य जगहों पर भी
प्लास्टिक गिलास, प्लेट्स व अन्य बर्तन बहुत बड़ी मात्रा में प्रयोग किये जाते है |
खाना खाने के अलावा इनको पैक करने या बचे हुए खाने को रखने के लिए भी प्लास्टिक
बर्तन ही प्रयोग में लाये जाते है |
खाने के साथ साथ पेय पदार्थों को भी प्लास्टिक
बोतलों में रखा जाता है | प्लास्टिक के अधिक इस्तेमाल से वातावरण तो प्रदूषित होता
ही है साथ ही इससे हमारा स्वास्थ्य भी बहुत प्रभावित होता है | प्लास्टिक बर्तनों
में चाय , कॉफ़ी या अन्य गर्म पेय लेने से कई तरह की परेशानियाँ होने की सम्भावना
हो सकती है | इन बर्तनों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने से गुर्दे, लीवर और कैंसर
की समस्या होने की संभावना बढ़ने लगती है |
आज हम आपको प्लास्टिक बर्तनों में खाना खाने व
पेय पदार्थ लेने से हमारे स्वास्थ्य को कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है |
प्लास्टिक बर्तनों में खाना खाने से निम्नलिखित परेशानियाँ हो सकती है :
गंभीर बीमारियाँ फैलाने वाले तत्व :
वर्तमान समय में बाजार में उपलब्ध प्लास्टिक
सामान जैसे बैग, कप, प्लेट व अन्य सामान, जिनको किसी चीज को गला कर ( रीसायकल करके
) बनाया जाता है | इनको गला कर दोबारा बनाने के लिए बिस्फेनॉल-ए जैसे जहरीले
केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है | इस केमिकल से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होने
की संभावना बढ़ने लगती है |
बिस्फेनॉल-ए केमिकल के साथ साथ प्लास्टिक का सामान बनाने के लिए
और भी हानिकारक केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है | इनसे प्लास्टिक के सामान को
अधिक रंग देने या रंग बदलने का काम किया जाता है | इसी वजह से ये बर्तन ज्यादा
हानिकारक होने लगते है| इन बर्तनों में जैसे ही कोई गर्म चीज डाली जाती है तो इनमे
मिले केमिकल्स उस चीज में मिलने लगते है | जब हम उस चीज का सेवन करते है तो खतरनाक
केमिकल हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते है और बिमारियों का कारण बनते है | गर्म
पदार्थों के अलावा इन बर्तनों में ठन्डे पदार्थ रखने पर भी ऐसा भी रिएक्शन होने
लगता है |
विशेषज्ञों के अनुसार बिस्फेनॉल-ए बच्चों और
महिलाओं के लिए बहुत हानिकारक साबित होता है | इससे महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने
की समस्या बढ़ने लगती है तथा पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी होने लगती है | इस
हानिकारक केमिकल के प्रभाव से दिमाग की कार्य क्षमता भी घटने लगती है | इससे
बच्चों को मानसिक रोग होने लगते है तथा पेट सम्बन्धी बीमारियाँ होने की संभावना
होने लगती है |
बिस्फेनॉल-ए के प्रभाव से हमारी अल्फा सेल
(कोशिका) पर भी बुरा प्रभाव होने लगता है जिससे अग्नाशय में इन्सुलिन का निर्माण
होता है | शरीर में इन्सुलिन की कमी से व्यक्ति को मधुमेह रोग हो सकता है | इस
केमिकल के बुरे प्रभाव के कारण शरीर के एंडोक्राइन सिस्टम (अंतःस्रावी तंत्र ) में
गड़बड़ होने लगती है जो हमारी हारमोंस के स्तर में कमी करने लगता है |
प्लास्टिक बर्तनों में खाना खाने से ऊपर दिए
कुछ शारीरिक नुकसान और रोग होने की सम्भावना होने लगती है | इसलिए हमें प्लास्टिक
और प्लास्टिक से बनी हुई चीजों को खाना खाने के लिए कम से कम इस्तेमाल करके शरीर
को इसके बुरे प्रभावों से बचाना चाहिए अन्यथा हम कई गंभीर बिमारियों की चपेट में आ
सकते है |
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