ब्रह्मचर्यासन
यह आसन ब्रहमचर्य की साधना के लिए बहुत
महत्वपूर्ण होता है इसलिए इस आसन को ब्रह्मचर्यासन का नाम दिया गया है| इस आसन से मानसिक संतुलन
बनाकर मन को शांति प्रदान की जा सकती है| ब्रहमचारी साधना का अनुपालन करने के लिए
ब्रह्मचारी लोग इस आसन को लगाते है|
विधि :
समतल भूमि पर दरी या कम्बल बिछाकर बैठ जाएं| अब दोनों पैरों के बीच में
अंतर रखते हुए सामने की तरफ फैला दें| इसके बाद बाएं पैर को घुटने से मोड़कर शरीर की
ओर खींच ले और दाहिने पैर की जंघा के पास रखें| अब बाएं पैर की एड़ी से दबाव बनाकर पैर के तलवे
को जांघ से सटाकर अंगूठे व उंगलियों को दाहिने पैर के घुटने से दबा दें| अब दाहिने पैर को भी इसी
तरह से मोड़कर बाएं पैर की जंघा और घुटने के बीच रखे ताकि एड़ी बायीं पैर की जंघा
संधि पर दबाव बनाए तथा अंगूठे व उंगलियों के बीच आ जाएं| धड़ को सीधा और आराम की
अवस्था में रखें| दोनों हाथों को सीधे फैलाकर घुटनों पर रख दें और हथेलियां खुली हुई व सीधी होनी
चाहिए| तर्जनी उंगली और
अंगूठा एक दूसरे से स्पर्श करते हुए रहने चाहिए|
ब्रह्मचर्यासन के लाभ :
1.
इस आसन द्वारा रक्त संचार सुचारू रूप से होने लगता है|
2.
इसके द्वारा वीर्य को संरक्षित करके वीर्य वृद्धि की जाती
है|
3.
आधा सीसी दर्द के दौरान इस आसन से बहुत आराम मिलता है|
4.
यदि कोई अप्रिय घटना बहुत प्रयत्न करने के बाद भी नहीं
भुलाई जा रही हो तो इस आसन का अभ्यास करने से कुछ दिनों व्यक्ति उस घटना को भूल
सकता है|
5.
इस आसन से ब्रह्मचर्य साधको में काम भाव और कामुकता के भाव
ख़त्म हो जाते है और ब्रह्मचर्य पर भी नियंत्रण किया जा सकता है|
6.
इस आसन से युवावस्था में बहुत लाभ मिलते है इससे स्वप्नदोष,
मस्तिष्क में बुरे विचार और तनाव जैसी समस्या से मुक्ति मिल सकती है|
7.
पचास वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति इस आसन द्वारा अलौकिक
शक्ति को प्राप्त कर सकते है|
8.
इस आसन से स्त्री और पुरुष दोनों को समान रूप से लाभ मिलता
है|
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