कैसे करें प्राणायाम | प्राणायाम शब्द का अर्थ और लाभ | Pranayam Poses Ke Laabh in Hindi


प्राणायाम ( Pranayam)

प्राणायाम  शब्द का अर्थ :

प्राण मनुष्य के जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण अंग है| प्राण को हम सामान्य भाषा में श्वांस भी कह सकते है|  संसार के प्रत्येक प्राणी का जीवन श्वांस के कारण ही होता है अगर साँस लेने और छोड़ने की निश्चित संख्या ख़त्म हो जाये तो मनुष्य का जीवन भी उसी समय समाप्त हो जायेगा| इस प्रकार गहरे साँस लेना और निकालना मनुष्य को स्वस्थ और लम्बी आयु प्रदान करने में सहायक है|

Pranayam Poses Ke Laabh in Hindi

मनुष्य के शरीर में प्राणवायु और अपानवायु दो प्रकार की शक्तियां है| प्राणवायु ऊपर चलती है तथा अपानवायु नीचे चलने वाली होती है| कोई मनुष्य अगर इन दोनों शक्तियों को नियंत्रित करके दोनों को एक दूसरे में मिला देता है तो उसे प्राणायाम का नाम दिया जाता है|
सांसो के आसानी से लेने और छोड़ने का अभ्यास ही प्राणायाम कहलाता है| प्राण को नियंत्रण में करना, लम्बे साँस लेना और साँस को बाहर निकालकर बाहर ही रोक देना यही प्राणायाम का आधार होता है इनको योग की भाषा के अनुसार पूरक, कुम्भक और रेचक नाम दिए गए है|

प्राणायाम में श्वास लेने की क्रियाएँ :

पूरक :
प्राण (वायु) को अन्दर की तरफ खींच लेना पूरक विधि कहलाता है|

रेचक :
प्राण (वायु) को बाहर की ओर निकालना रेचक विधि होती है|

कुंभक :
इस विधि में साँस को अन्दर खींचकर अन्दर ही रोकना या फिर बाहर की तरफ निकालकर बाहर ही रोके रखना होता है| कुंभक विधि दो प्रकार की होती है|

अभ्यांतर कुंभक :
साँस को अन्दर खींचकर रोके रखना अभ्यांतर कुंभक कहलाता है|

बाह्य कुंभक :
साँस को बाहर निकालकर रोके रखना (अगली साँस ना लेना) बाह्य कुम्भक होता है|

प्राण के प्रमुख अंग :

मनुष्य के शरीर में 10 प्राण होते है जिनके नाम प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, कृकर, देवदत और धनञ्जय है| इनमे सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली प्राण और अपान होते है क्योंकि इनका मूलाधार चक्र में कुंडली जागरण में महत्वपूर्ण स्थान है|


कुंडली जागृत होकर सुषुम्ना नाड़ी को गति प्रदान करके शरीर के चक्रों का भेदन करती है| गति से ही इन चक्रों को जागृत किया जा सकता है| ये सात चक्र कुंडली शक्ति प्राप्त करने का रास्ता है जो इस प्रकार है – मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञाचक्र तथा सहस्वाचक्र|  
  
प्राण वायु का परिचय :

1.      प्राण वायु :
प्राण वायु ह्रदय से नाक तक के हिस्से में विद्यमान रहता है और शरीर के ऊपर के हिस्से की इन्द्रियां प्राणवायु के नियंत्रण में ही कार्य करती है| प्राण वायु के कार्यों में साँस को अन्दर ले जाकर बाहर निकालना, मुंह और नाक से साँस को गति प्रदान करना, भोजन व पानी को पचाना और अलग करना शामिल है| इसके अलावा अन्न को शौच में, पानी को पसीने और मूत्र में परिवर्तित करना तथा रस को वीर्य में बदलना भी प्राणवायु के ही कार्यों में आता है|

2.      अपान वायु :

अपान वायु नाभि से तलुओं के बीच विद्यमान रहता है तथा शरीर के निचले हिस्से की इन्द्रियों व कमर, घुटना और जांघ के कार्य को नियंत्रण में करता है| अपान वायु के कार्यों में गुदा से मल, उपस्थ से मूत्र, अंडकोष से वीर्य निकालना और गर्भ को नीचे ले जाना आदि शामिल हैं|

3.      समान  वायु :

यह शरीर में मध्य भाग में नाभि से हृदय तक रहकर कार्य करती है| इसका कार्य पचे हुए रस को शरीर के सभी अंगों और नाड़ियों को समान रूप से पहुंचना है|

4.      व्यान वायु :

यह उपस्थमूल (पेडू) से ऊपर स्थित होता है| इसका कार्य सारी स्थूल का सुक्ष्म नाड़ियों में गति प्रदान करके सभी अंगों में रक्त संचरण करना होता है|

5.      उदान वायु :

उदान वायु गले में स्थित होकर सिर को गति देकर शरीर को उठाये रखने का काम करता है| यह शरीर के व्यष्टि प्राण का समष्टि प्राण से सम्बन्ध बनाता है| इसी के द्वारा मृत्यु के समय सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से बाहर निकलता है तथा इसी के द्वारा गर्भ में कर्म, गुण, वासना व संस्कार आदि पहुंचते है
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प्राणायाम क्रिया प्रणाली व भेद :

प्राणायाम का अभ्यास करके व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी बनकर अपने मन और इन्द्रियों को नियंत्रण में कर सकता है इसी कारण इसे योग क्रिया का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है| इसके द्वारा मानसिक शक्ति का विकास करके आयु वृद्धि की जा सकती है|
इस क्रिया में नासिका द्वारा पूरक विधि द्वारा प्राणवायु को गुदा स्थान तक ले जाया जाता है और अपान वायु से मिला दिया जाता है| इसी विधि द्वारा रेचक करके अपान वायु को गुदा स्थान से ऊपर की तरफ खींचा जाता है| कुम्भक विधि द्वारा प्राणवायु और अपान वायु को नाभि में रोककर समान वायु से मिला दिया जाता है| इसी प्रकार प्राणायाम की क्रिया संपन्न करके रज व तम का मल ख़त्म किया जाता है|

प्राणायाम करने का तरीका (विधि) :

प्राणायाम का अभ्यास करने की बहुत सारी विधियाँ है लेकिन इसका अभ्यास करने से पहले किसी ज्ञानी व्यक्ति से इसका पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए तभी इसके द्वारा पूर्ण लाभ पाया जा सकता है नहीं तो लाभ की बजाय नुकसान भी हो सकता है|
सबसे पहले पदमासन की मुद्रा बनाकर और पीठ व गर्दन को बिल्कुल सीधी रखकर बैठ जाएं | इसके बाद मूलबंद लगा ले और साँस लेने की क्रिया को लम्बा और गहरा कर दें तथा आँखों को बंद रखें| दो या तीन साँस लेने पर आपको स्वाभाविक स्वर का ज्ञान हो जायेगा| यदि दायां स्वर हो तो दायें और यदि बायां हो तो बाएं से या फिर दोनों समान चल रहें हो तो दोनों नासग्रो से प्राणायाम शुरू किया जा सकता है| अब दायें हाथ को उंगलियों को मोड़कर अनामिका और कनिष्ठिका बाहर की तरफ खुली रखें और माध्यम और तर्जनी ऊँगली को हथेली को तरफ मोड़कर रखें| इस मुद्रा को विष्णु मुद्रा कहा जाता है|

स्वर के विपरीत नथुने को विष्णु मुद्रा के अंतर्गत बंद कर दें और स्वर से साँस को धीरे धीरे अन्दर की ओर खींचे| इस क्रिया में कोशिश करें कि साँस खींचकर नाभि तक पहुंचाई जा सके| इसके बाद नथुनों को अंगूठे और अनामिका उंगली से बंद कर दें और कुंभक करके ध्यान नाभि, ह्रदय और आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करने का प्रयास करें| अगर इस मुद्रा में परेशानी महसूस होने लगे तब जिस नथुने से पूरक किया था उसको विष्णु मुद्रा बनाकर दबा दें| अब जालंधर बंद को खोल दें और दूसरे नथुने से साँस को बाहर छोड़ दें तथा गुदा स्थित वायु को नाभि तक खींचने की कोशिश करें| अब दोनों नथुनों को बंद कर दें और कुंभक करके ध्यान नाभि, ह्रदय और आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करने का प्रयत्न करें| यह प्रक्रिया होने के बाद प्राणायाम की एक क्रिया पूरी हो जाती है| इसी प्रकार अलग अलग विधि द्वारा प्राणायामों का अभ्यास किया जा सकता है तथा उनकी संख्या बढाई जा सकती है|    
सावधानी :

प्राणायाम के दौरान मुलबंध स्थिर और दृढ अवस्था में लगाकर जालधर बंद पूरक के पश्चात कुम्भक करके ही लगाना चाहिए अन्यथा इससे नुकसान भी हो सकता है| प्राणायाम करने से पहले पेट बिल्कुल साफ़ होना चाहिए और प्राणायाम के डेढ़ या दो घंटे तक किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए| इसके अलावा प्राणायाम करने वालों को मांस, मदिरा व अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से परहेज रखना चाहिए|

प्राणायाम के लाभ :

प्राणायाम का नियमित अभ्यास करके शरीर के अनेकों रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है| काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को ख़त्म करके मानसिक शांति प्राप्त की जा सकती है| शरीर को शक्ति प्रदान करके युवावस्था को लंबे समय तक बनाये रखा जा सकता है|

यम नियम का पालन करके सातों चक्रों का भेदन करके साधक द्वारा अपना तीसरा नेत्र खोलकर कुंडली शक्ति को जगाया जा सकता है| मनुष्य के विभिन्न नाड़ी चक्रों का सम्बन्ध स्वास्थ्य और मन से होता है इसलिए नाड़ी चक्रों के जागृत हो जाने से मनुष्य को अनेक लाभ और अलौकिक शक्तियां मिल जाती है| इन्हें योगासन और प्राणायाम द्वारा ही जागृत किया जा सकता है| इस प्रकार हम कह सकते है कि प्राणायाम से मनुष्य के शरीर को अनेक लाभ मिलते है जो मनुष्य के जीवन को खुशहाल बनाने में सहायक होते है|


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