योग चक्रों का परिचय और दर्शन | Yoga Chakra The Real Power in Our Body


योग चक्रों का परिचय और दर्शन  :

योग चक्र ही कुंडली शक्ति का मार्ग है कुंडली जागृत होकर सुषुम्ना नाड़ी को गति प्रदान करके शरीर के चक्रों का भेदन करती है| गति से ही इन चक्रों को जागृत किया जा सकता है| जो इस प्रकार है – मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञाचक्र तथा सहस्वाचक्र| 
  




1.      मूलाधार चक्र (Muladhar Chakra) :
यह चक्र शरीर के निचले भाग में गुदा और लिंग के मध्य होता है इस भाग को सीवनी कहते है| सुषुम्ना नाड़ी के निकलने के स्थान से लेकर मेरुदंड सम्बन्धी सभी ज्ञानवाहक और गतिवाहक नाड़ी पुंज मूलाधार चक्र में के अन्दर होते है| इस चक्र की आकृति कमल के समान चार वर्णों वाली होती है तथा इसके बीच में लिंग विराजमान होता है| इस लिंग के चारों ओर कुंडलिनी शक्ति साढ़े तीन लपेटे लगाये हुए पाई जाती है तथा इसे प्राणायाम, आसन और अन्य यौगिक क्रियाओं द्वारा जागृत किया जा सकता है| चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मूलाधार चक्र को हड्डियां, मांस, चमड़ी तथा केश उत्पति और उन्हें नियंत्रण करने वाली नस नाड़ियों का केंद्र माना गया है| इस चक्र में चेतना उत्पन्न करके मनुष्य स्तंभन शक्ति तथा वीर्य रक्षा कर सकता है|
2.      स्वाधिष्ठान चक्र (Svadhishthan Chakra):  
यह चक्र मुलाधार से 4 अंगुल ऊपर तथा मेरुदंड के आगे के हिस्से में लिंग के सामने होता है| इसकी आकृति छह पंखुड़ियों वाले कमल जैसी होती है| इस चक्र में चेतना उत्पन्न होने से ब्रह्मचर्य साधना में विशेष सहायता मिलती है तथा भय, घृणा, क्रोध, हिंसा आदि को भी अभय, प्रेम, क्षमता और अहिंसा में बदला जा सकता है|  
3.      मणिपूरक चक्र ( Manipurak Chakra):
यह चक्र मेरुदंड के आगे वाले भाग में स्थित होने के कारण इसको नाभि चक्र भी कह सकते है| यह पंखुड़ियों वाले पीले कमल के समान होता है और शरीर में पाचन क्रिया का नियंत्रण केंद्र भी यही है|  यह चक्र सभी नाड़ियों और चक्रों का मिलन स्थान है| इस चक्र की साधना करके सम्पूर्ण शरीर की व्यवस्था प्रणाली में संतुलन और तालमेल बनाने में मदद ली जा सकती है| इसके अलावा शारीरिक और मानसिक थकान को दूर किया जा सकता है|
4.      सूर्य चक्र (Surya Chakra)  :
यह चक्र हृदय के पास तथा मणिपूरक चक्र से ऊपर स्थित होता है| इस चक्र में अग्नि तत्व प्रधान होने के कारण पाचन क्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है| इस चक्र की साधना करके पेट और आंतों के सभी कार्य व्यवस्थित किये जा सकते है| यह चक्र सूर्य के बिम्ब के समान प्रकाशवान और लघु आकार का प्रतिबिम्ब होता है|
5.      चन्द्र चक्र (Chandra Chakra) :
यह चक्र नाभि से ऊपर के भाग प्लीहा (तिल्ली) में होता है तथा इसमें चन्द्र रंग बिंबवत दिखने के कारण इसको चन्द्र चक्र कहा गया है| कुम्भक, प्राणायाम व अन्य आसनों से इस चक्र की साधना करके तार्किक व मानसिक शक्ति को विकसित किया जा सकता है|
6.      अनाहत चक्र (Anahat Chakra):
यह चक्र मेरुदंड में ह्रदय के सामने होता है तथा इसकी आकृति बारह पंखुड़ियों वाले सिंदूरी कमल की तरह होती है| इस चक्र का सम्बन्ध हृदय से होने के कारण इसे हृदय चक्र के नाम से भी जाना जाता है| इसके अलावा ह्रदय की क्रियाएँ भी इसी चक्र द्वारा संचालित की जाती है| इस चक्र को जागृत करने से मनुष्य में विचार सम्प्रेषण और दूसरे के विचारों को पढने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है|
7.      विशुद्धि चक्र (Vishuddha Chakra):
यह चक्र हृदय से ऊपर कंठ स्थान के मूल में होता है| इस चक्र में वायु तत्व प्रधान होता है तथा स्वर यंत्र में यह सोलह छल्लों की रचना करता है| स्वर का ज्ञान करना और बोलने की शक्ति देना इस चक्र का प्रमुख कार्य है| इस चक्र की साधना करके चित्त को स्थिर बनाकर अंतरात्मा को दिव्य स्वरुप के दर्शन कराये जा सकते है| इसके अलावा रक्त को शुद्ध कर यौवन और उत्साह को बनाये रखने में भी इस चक्र की साधना बहुत फायदेमंद होती है|
8.      आज्ञा चक्र (Aagya Chakra) :
इस चक्र का स्थान दोनों भौहों के बीच स्थान में माथे पर जहाँ पर तिलक लगाते है वहां पर होता है इसकी आकृति दो दलों वाले सफेद रंग के कमल जैसी होती है| व्यक्ति की आँखें जो भी देखना चाहती है यह चक्र उन संदेशों को हृदय तक पहुँचाने का कार्य करता है| इस चक्र की साधना करके आयु में वृद्धि की जा सकती है| इस चक्र को शारीरिक और मानसिक प्रेरणाओं का केंद्र भी माना जाता है| इसके अलावा इसको जागृत करके अहंकार को ख़त्म कर ब्रह्म को पाया जा सकता है| अकेले आज्ञा चक्र को जागृत करके, सभी चक्रों को जागृत करने से जो दिव्यफल मिलते है उन्हें पाया जा सकता है|
इन आठ चक्रों के आलावा शास्त्रों में 2 अन्य चक्रों का भी जिक्र किया गया है जिनके नाम बिंदु चक्र और सहस्त्रार चक्र|

बिंदु चक्र सिर के उपरी भाग में चोटी रखने के स्थान पर स्थित होता है तथा सहस्त्रार चक्र सिर के बीच के भाग में तालू स्थान पर होता है| इस चक्र को सहस्त्रदल कमल के नाम से भी जाना जाता है| ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव का निवास स्थान होता है| इस चक्र की साधना करके मस्तिष्क में स्थित सारे शरीर और मन की क्रियाओं की नियंत्रित किया जाता है|  

    

No comments:

Post a Comment