जो नाम सुनने में ही अजीब सा लगे उससे किसी को
कैसे फायदा हो सकता है और कौन इसे अपने घर में लाकर इसका लाभ लेने का प्रयास करने
की कोशिश करेगा|
हालाँकि दवाइयों और वनस्पतियों के नाम अंग्रेजी भाषा में ज्यादा अच्छे माने जाते
है लेकिन उनके असली गुणों या अवगुणों के बारे में उनके स्थानीय नामो से ही अधिक
पता लगाया जा सकता है|
उदाहरण के लिए मार्निंग ग्लोरी पौधे के
अंग्रेजी नाम के बजाय इसके गुणों के कारण स्थानीय नाम बेशरम या बेहया से पहचाना जा
सकता है|
इसी तरह से सु-बबूल का भी कुछ ऐसा ही उदाहरण है| यह पौधा तेजी से फैलता है और समस्या
का कारण बनता है इसलिए इसका नाम कु-बबूल रख दिया गया है|
वैसे कई पौधों के अंग्रेजी नाम भी उनके अवगुणों
के बारे में बता देते है जैसे बायोडीजल के नाम से प्रचारित जैट्रोफा का उदहारण है| इस तेल से बायोडीजल बनाया जाता है
लेकिन इसे ब्रिटेन में हेल आयल (नरकीय तेल ) के नाम से जाना जाता है| इसका ऐसा नाम इसलिए है क्योंकि इस तेल
में कैंसर को बढ़ावा देने वाले तत्वों की अधिकता होती है|
बाकी बातों को छोड़कर हम सत्यानाशी पौधे पर
विचार करते है| यह
पौधा बेकार और बंजर जमीन पर पैदा होता है तथा यह कांटेदार प्रवृति का होता है इसी
कारण लोग इसे पसंद भी नहीं करते है| अगर यह पौधा किसी घर के पास उग जाये
तो इसे उखाड़ कर फैक दिया जाता है| गाँवों में तांत्रिक व ओझा इस पौधे का इस्तेमाल भूत उतारने के लिए
करते है|
इसके कांटो को प्रभावित महिला की पिटाई करने के लिए किया जाता है तथा कई बार इसके
काँटों पर लेटाकर भी भूत निकालने का प्रयास किया जाता है| इसके अलावा यह पौधा तंत्र साधना के
लिए भी प्रयोग में लाया जाता है|
इस तरह के पौधे और वनस्पतियों से लोग दूर ही
रहना पसंद करते है| सत्यानाशी को लेकर देश के अलग अलग हिस्सों में अनेक प्रथाएं और
विश्वास प्रचलित है| कुछ लोग इसे अशुभ और बेकार मानते है तो व्यापारी लोग इसका इस्तेमाल
मुनाफा कमाने के लिए करते है|
सत्यानाशी के पौधे को विज्ञान द्वारा आर्जिमोन
मेक्सिकाना नाम दिया गया है| यह पौधा मेक्सिको देश में अधिक मात्रा में पाया जाता है लेकिन
भारतीय चिकित्सा ग्रंथो में इसके अनेक गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है| इस पौधे का संस्कृत भाषा में स्वर्णक्षीरी
नाम है और इसके इस नाम से ऐसा लगता है मानो यह स्वर्ग की कोई वनस्पति है|
हैरानी की बात तो यह है कि सत्यानाशी के बीज से
जो रोग फैलता है इसकी पत्तियों और जड़ से उस रोग की चिकित्सा की जा सकती है| देश के अधिकतर हिस्सों में इससे फैलने
वाले रोगों का उपचार इसी विधि द्वारा किया जाता है| देश के विभिन्न हिस्सों में इसको अलग
अलग नामो से जाना जाता है ये नाम इस प्रकार है :
संस्कृत- स्वर्णक्षीरी, कटुपर्णी
कन्नड़- दत्तूरि
गुजराती- दारुड़ी
तमिल- कुडियोट्टि
तेलुगू- इट्टूरि
हिन्दी- सत्यानाशी, भड़भांड़, चोक
मराठी- कांटेधोत्रा
बंगाली- चोक, शियालकांटा
मलयालम- पोन्नुम्माट्टम
इंग्लिश- मेक्सिकन पॉपी
लैटिन- आर्जिमोन मेक्सिकाना |
इस पौधे के चारो तरफ कांटे ही कांटे होते है और
इसकी ऊंचाई लगभग 2 – 3 फीट तक हो सकती है तथा यह पौधा वर्षाकाल और शीतकाल के मौसम
में पोखरों, खाइयों और तलैयों के किनारे अधिक से अधिक पाया जाता है| इस पर पीले रंग के फूल लगते है जिनकी
पांच से साथ पंखुड़ी होती है| इसके बीज का आकार और रंग रूप राइ के बीज जैसा होता है तथा इसके
पत्तों और फूलों से पीले रंग का दूध निकलता है|
इसकी जड़, बीज, दूध और तेल का उपयोग करके बहुत
फायदा लिया जा सकता है| इसका तेल बनाने के लिए सत्यानाशी पंचांग का इस्तेमाल किया जाता है| यह तेल बहुत ही महत्वपूर्ण और
प्रभावशाली होता है क्योंकि इसका इस्तेमाल करके बड़े से बड़ा घाव भरा जा सकता है|
तेल बनाने की विधि :
सबसे पहले अपने शरीर का बचाव करते हुए इस पौधे
को जड़ से उखाड़ कर इसे पानी में धो कर साफ़ कर लें| इसके बाद इसको कूट कर इसका रस निकाल
लें और रस में लगभग एक चौथाई मात्रा के बराबर सरसों का तेल मिलकर हल्की आंच पर
गर्म करने के लिए रख दें| ठीक तरह से पकने के बाद जब केवल तेल ही बाकी रह जाये तब मिश्रण को
आंच से नीचे उतारकर ठंडा होने दे और बाद में डिब्बे या शीशी में भर लें| इस तेल को व्रणकुठार तेल का नाम दिया
गया है|
प्रयोग करने की विधि :
इस तेल का प्रयोग करके किसी भी बड़े से बड़े घाव
को जल्दी ही ठीक किया जा सकता है | इसका इस्तेमाल करने के लिए घाव को पानी
से धो लें|
पानी में नीम की पत्तियां जरुर डाल लें| इसके बाद रुई को तेल में डुबोकर घाव
पर लगाना चाहिए|
घाव ज्यादा समय पुराना हो या ज्यादा गंभीर हो तो अधिक लाभ लेने के लिए तेल में रुई
डुबोकर घाव पर पट्टी की मदद से बांधकर रखना चाहिए| इस उपाय से कुछ ही दिनों में बड़े से
बड़ा घाव ठीक करके परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है|
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