अल्ट्रासाउंड कराने से पहले जाने आवश्यक बातें को | ultrasound kraane se pehle jaane aawshyak baaton ko



जब किसी व्यक्ति को पेट की समस्या या किडनी सम्बंधित परेशानी हो और बाहरी तौर पर उसका कोई साफ साफ लक्षण दिखाई ना दे तो डॉक्टर उसे अल्ट्रासाउंड करवाने को कहता है क्योंकि अल्ट्रासाउंड के माध्यम से ही अंगों और उनकी वेव्स का सही तरीके से देखा जा सकता है |

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मनुष्य के पेट के ऊपरी हिस्से में लीवर, किडनी, पित्ताशय की थैली और पाचक ग्रंथि पायी जाती है | अल्ट्रासाउंड परीक्षण करके पेट दर्द, किडनी की समस्या जैसे पथरी और अन्य पेट सम्बन्धी बिमारियों का उपचार करने में मदद ली जा सकती है |

आज हम आपको इस लेख के माध्यम से पेट के उपरी हिस्से का अल्ट्रासाउंड करवाते समय कुछ बातों को ध्यान रखने के विषय में बताने जा रहे है | अगर आप भी अल्ट्रासाउंड करवाना चाहते है तो इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें ताकि आपको इसका पूरा लाभ मिल सकें| आइये जानते है अल्ट्रासाउंड से सम्बंधित कुछ खास बातों को जो आपके सामने इस प्रकार से है :

अल्ट्रासाउंड करवाने से पहले रखें सावधानी :

अल्ट्रासाउंड करवाने से पहले डॉक्टर द्वारा मरीज को 8 से 10 घंटे पहले कुछ भी खाने से परहेज रखने की सलाह दी जाती है | हालाँकि कुछ मामलों में यह अवधि 4 से 6 घंटे की भी हो सकती है | कुछ विशेष मामलों में रोगी व्यक्ति को फैट फ्री खाना खाने के लिए भी सलाह दी जाती है | किडनी की समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को अल्ट्रासाउंड करवाने से पहले चार या 6 गिलास पानी पीने के लिए कहा जाता है | अल्ट्रासाउंड करवाने से पहले रोगी व्यक्ति को ढीले कपड़े पहनने की सलाह भी दी जाती है | अलग अलग मामलों में रोगी को अल्ट्रासाउंड कराने से पहले अलग अलग सलाह दी जाती है |

अल्ट्रासाउंड की कार्यविधि कैसी होती है :

अल्ट्रासाउंड को सोनार इमेजिंग के सिद्धांत पर बनाया गया है और इसमें ट्रांसड्यूसर द्वारा कैप्चर्ड साउंड वेव्स एक ऑब्जेक्ट के माध्यम से पास होती है और आपस में टकराकर वापस आ जाती है | इसमें एक प्रकार की स्क्रीन भी होती है जिसमे एक तस्वीर छप जाती है | ट्रांसड्यूसर एक माइक्रोफोन की तरह ही दिखाई देता है जो परीक्षण के दौरान साउंड वेव्स को अंगों तक पहुंचाता है और डिस्प्ले इमेज के लिए गूंज (echoes) को कैप्चर करता है।

अल्ट्रासाउंड कैसे करते है :

रोगी व्यक्ति को एक सपाट टेबल पर लेटा दिया जाता है साथ ही टेबल की आगे की तरफ झुका दिया जाता है | बाद में रेडियोलॉजिस्ट द्वारा त्वचा पर जैल लगाकर जाँच शुरू की जाती है | जैल का प्रयोग इसलिए किया जाता है ताकि स्किन और ट्रांसड्यूसर के बीच आने वाली हवा को खत्म किया जा सकते और इनक सही तरीके से सम्पर्क किया जा सके | ट्रांसड्यूसर को वांछित छवियों के कैप्चर करने की अवधि तक हिलाया जाता है | जाँच पूरी होने के बाद जैल को पोंछ दिया जाता है |

जैल का इस्तेमाल फायदेमंद होता है या नुकसानदायक :

अल्ट्रासाउंड करने से पहले इस्तेमाल में लाया जाने वाला जैल हमारी त्वचा के लिए सुरक्षित होता है और यह नॉन-टॉक्सिक भी होता है | जेल का प्रयोग करके अंगों की बेहतर छवियों के लिए केवल स्किन और ट्रांसड्यूसर के बीच संपर्क में सुधार के लिए किया जाता है | इसलिए इससे हमें कोई नुकसान नहीं होता है |

क्या अल्ट्रासाउंड के दौरान दर्द महसूस होता है :

अल्ट्रासाउंड करते समय व्यक्ति को किसी प्रकार का दर्द नहीं होता है हालाँकि कई बार व्यक्ति को बैचनी होने लगती है लेकिन ऐसा होना कोई परेशानी के संकेत नहीं होते है | अल्ट्रासाउंड के समय मरीज को साँस रोकने के लिए कहा जाता है जिसके कारण ऐसा होने की संभावना हो सकती है जिसके कारण मरीज असहज हो सकता है |

अल्ट्रासाउंड में कितना समय लगता है :

अल्ट्रासाउंड करने में सामान्य तौर पर केवल आधा घंटा लगता है लेकिन कई मामलों में दूसरा टेस्ट करने में कुछ ज्यादा समय भी लग सकता है क्योंकि जाँच के दौरान बेहतर चित्र लेने के लिए भी ऐसा करने में समय लग सकता है |

इसकी रिपोर्ट कितने समय में मिल सकती है :

सामान्य रूप से अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट आपको उसी दिन मतलब 15 या 20 मिनट बाद मिल सकती है | अगर कोई तकनीकी खराबी हो या कोई और वजह होने के कारण आपको अगले दिने के लिए भी कहा जा सकता है |

ऊपर दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए ही अल्ट्रासाउंड करवाते समय ज्यादा फायदा लिया जा सकता है | इसलिए आप जब कभी अल्ट्रासाउंड करवाने जाएँ तो ऊपर दिए गए सुझावों को अनदेखा ना करें और इन्हें ध्यान रखते हुए भरपूर लाभ उठायें |




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