जनेऊ का आरोग्य और वैज्ञानिक
महत्व:
वैज्ञानिक दृष्टि से जनेऊ पहनना बहुत ही लाभदायक
है। यह प्राचीन परंपरा न केवल धार्मिक लिहाज से, बल्कि आरोग्य ,वैज्ञानिक लिहाज से भी बहुत महत्व रखती है।
1. चिकित्सकों अनुसार जनेऊ
के हृदय के पास से गुजरने के कारण रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होता है इसलिए
हृदय रोग की संभावना को कम करता है|
2. जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति
नियमों में बंधा होने के कारण मल विसर्जन के बाद जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न
कर ले तब तक अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। अत: सफाई के कारण वो दांत, मुंह, पेट रोगों
जीवाणुओं से बचा रहता है।
3. मल-मूत्र विसर्जन के पहले जनेऊ को दाहिने कान पर कस कर दो बार लपेटना
पड़ता है। कान के पीछे की दो नसों का संबंध पेट की आंतों से होता है, जनेऊ का दबाव कान
की नसों पर पड़ता है,जिसका सीधा असर आंतों पर होता है, जो आंतों पूरा खोल देता है, जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है | इसके आलावा कान के पास ही एक नस से मल-मूत्र विसर्जन के समय
कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देता है, जिससे पेट रोग (कब्ज, एसीडीटी) मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय
के रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।
4. चिकित्सा विज्ञान के
अनुसार दाएं कान की एक विशेष नाडी लोहितिका अंडकोष से सीधी जुड़ी
होती है।अगर इस नाडी को दबा दिया जाए तो स्वस्थ आदमी का भी पेशाब निकल जाता है | हिरणिया
नामक बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर दाएं कान का छेदन भी करते है | मूत्र विसर्जन
के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से मूत्र की अन्तिम बूँद भी उतर जाती है तथा शुक्राणुओं
की रक्षा होती है।
5. दाएं कान पर जनेऊ लपेटने
से सूर्य नाड़ी का जाग्रत हो जाती है।
6. कान की वह नस दबने से मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
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