जनेऊ क्या है ?
जनेऊ धारण करने की परंपरा क्यों? इसके कारण क्या है?

ब्रह्मसूत्र क्या है ?
जनेऊ (यज्ञोपवीत) को
ब्रह्मसूत्र, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध और बलबन्ध भी कहते हैं। वेदों में भी जनेऊ धारण करने की हिदायत
दी गई है। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। 'उपनयन' का
अर्थ है,
पास या निकट ले जाना। जनेऊ धारण करने वाला व्यक्ति ब्रह्मा(परमात्मा)
के प्रति समर्पित हो जाता है | जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति को विशेष नियम
आचरणों का पालन करना पड़ता है |
जनेऊ क्या है?
जनेऊ तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है | जिसे यज्ञोपवीतधारी
व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है, यानी इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के
ऊपर रहे।
जनेऊ धारण करने का मन्त्र है...
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् |
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च
शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ||
कौन कर सकता है, जनेऊ धारण?
हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक हिन्दू का
कर्तव्य है कि वो जनेऊ धारण करे और उसके नियमों का पालन करना।
जनेऊ के प्रकार :
तीन धागे वाले, छह धागे वाले जनेऊ
|
किस व्यक्ति को कितने धागे वाले जनेऊ धारण करना चाहिए ?
ब्रह्मचारी के लिए तीन धागे
वाले जनेऊ का विधान है, विवाहित पुरुष को छह धागे वाले जनेऊ धारण करना चाहिए | जनेऊ
के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं। आजीवन
ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली लड़की भी जनेऊ धारण कर सकती है।
जनेऊ के नियम :
1. जनेऊ को मल-मूत्र विसर्जन
के पहले दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका अर्थ
यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो।
2. जनेऊ का कोई धागा टूट जाए
या मैला हो जाए, तो बदल देना चाहिए।
3. जन्म-मरण के सूतक के बाद
इसे बदल देना चाहिए।
4. जनेऊ शरीर से बाहर नहीं
निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं।एक
बार जनेऊ धारण करने के बाद मनुष्य इसे उतार नहीं सकता। मैला होने पर उतारने के बाद
तुरंत ही दूसरा जनेऊ धारण करना पड़ता है।
यज्ञोपवीत के धागों का क्या अर्थ है ?
तीन सूत्र क्यों?
यज्ञोपवीत में मुख्यरूप से सूत्र
तीन होते हैं हर सूत्र में तीन धागे होते हैं। पहला धागा इसमें उपस्थित तीन सूत्र
त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और
महेश के प्रतीक होते हैं जो यज्ञोपवीत धारण करने वाले पर हमेशा कृपा करते है ।
दूसरा धागा देवऋण, पितृऋण और
ऋषिऋण को दर्शाता हैं और तीसरा सत्व, रज और तम इन तीनो गुणों की सगुणात्मक रूप से बढ़ोतरी हो ।
यज्ञोपवीत संस्कार
ReplyDeleteयज्ञोपवीत संस्कार को उपनयन संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। यह संस्कार सोलहों संस्कारों में सबसे विशेष महत्व का है। माता पिता बालक के इस संस्कार के प्रति काफी जागरूक रहते हैं. इस संस्कार के बाद बालक में विद्या बुद्धि के क्षेत्र मे विशेष परिवर्तन दीखता है।
अच्छी जानकारी है। जनेऊ बदलने संबंधी क्या नियम हैं? जनेऊ कब खंडित होता है? कभी कोई भूल हो जाये तो इसका क्या उपाय है? बताने का कष्ट करें।
ReplyDeleteBahut sunder jankari di danyabad
ReplyDelete