जीवन के पवित्र और अनमोल वचन | Holy and precious word
of life
1)हे मनुष्य तू अपने इस शरीर को रथ समझते हुए , अपनी
आत्मा को उस रथ में विराजमान युद्ध करने वाला योद्धा मान , वायु
की गति से भी तेज चलने वाले अपने मन को उस रथ में जुता हुआ अश्व मान, अपनी
बुद्धि को उस रथ का सारथी समझ , और
अपने विवेक को अपने अश्वो की लगाम मानते हुए अपने जीवन में आने वाली सभी रुकावटों का सामना करते हुए , अपनी
जीवात्मा को सदैव अच्छे मार्ग पर चलाते हुए अपने जीवन की यात्रा करनी चाहिए |
2)कर्म को
बोओ और आदत रूपी फसल को काटो अर्थात यदि हमारी आदते अच्छी होंगी तो हमारा चरित्र अच्छा होगा और जब हमारा चरित्र अच्छा होगा तो, हमारा नसीब अपने आप ही अच्छा हो जायेगा |
3)इस संसार में बहुत सारे मंदिर है परन्तु उन सभी मंदिरो में सबसे पवित्र मंदिर है हमारा शरीर, हमारे इस शरीर रूपी स्वरूप से अधिक कोई पवित्र स्थान इस संसार में कहीं और नहीं है |
4)हे मानव तू अपने मन , वचन , और कर्म से इस संसार में कभी किसी को किसी भी प्रकार का का दुःख नहीं देना चाहिए | तुझे हमेशा नफ़रत को प्रेम से क्रोध को क्षमा की भावना से , विरोध
को अनुरोध से, घृणा को दया से और हिंसा को अहिंसा की भावना से जीतना चाहिए |
5)इस संसार में जो अच्छे कार्य करता है वो आत्मा महान है और जो इस संसार में रहते हुए बुरे कार्य करता है वो बहुत ही तुच्छ प्राणी है | जन्म के समय प्राणी अपने मस्तक पर न तो
अच्छे
तिलक लगाकर आता है, और न ही
बुरे कार्य का तिलक लगाकर आता है|
6)जिस प्राणी को उसकी इन्द्रियों ने जीत लिया है अर्थात अपने वश में कर लिया है वो इस संसार में कुछ नहीं कर पाता है अर्थात सारी आयु वो अपने लक्ष्य से विहीन होकर इधर -उधर
भटकता रहता है | और जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया है अर्थात अपनी इन्द्रियों को अपने काबू में कर रखा है उसको अपने लक्ष्य से कोई दूर नहीं कर सकता |
7)हमारी असली कमजोरी ये है की हम अपने आप को सुधारने का प्रयत्न कम से कम करते है, और दुसरो को सुधारने का प्रयत्न ज्यादा से ज्यादा करते है |
you may also like:
No comments:
Post a Comment