माँ दुर्गा का पहला स्वरूप :
शैलपुत्री देवी
देवी दुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री का है, इसलिए नवरात्र के पहले दिन देवी माँ भवानी शैलपुत्री की पूजा और आराधना की जाती है| पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इनको शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है| शैलपुत्री प्रकृति की देवी है |
माँ का स्वरूप -माँ शैलपुत्री वर्षभ पर सवार होकर ,दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प धारण किये हुए है |
देवी शैलपुत्री कहती है की सारा संसार मुझसे ही है । संसार की सभी शक्तियों का समावेश मुझमे है । शिव कल्याण के देव है और माँ भवानी कल्याण को वितरित करने वाली है । इसलिए शैलपुत्री की आराधना शंकर जी के साथ की जानी चाहिए । शक्ति और शक्तिमान दोनों एक ही है| शंकर जी ने भी शक्ति की आराधना की है और शक्ति ने भी शंकर जी को पूजा है|
सृष्टि ,पालन और संहार ये इस जगत की तीन गतिविधियाँ है इन गतिविधियों को शिव और पार्वती ही संचालित करते है| सभी जीवो को प्रकृति से ही जीवन मिलता है, प्रकृति ही सभी जीवो का पालन करती है और प्रकृति ही सभी के काल का कारण बनती है । प्रकृति के इसी रूप को स्पष्ट करने के लिए ही देवी के पहले रूप में माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है ।
पहले दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में लगाते है इसी से उनकी योग साधना की शुरुवात होती है ।
“ या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्राकृतशेखराम् । वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ||”
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